एक दूसरे से नज़रें चुराते हुए टेबल के दोनों ओर बैठे हुए नदी के दोनो किनारों की तरह शांत इस इंतजार में की बातो की तरंग किस ओर से उठेगी।
“कैसी हो” रवि खामोशी तोड़ते हुए बोला।
“अच्छी हूँ, तुम कैसे हो” निशा ने धीरे से जवाब दिया।
रवि “बहुत वक़्त बीत गया लेकिन तुम बिलकुल नहीं बदली।”
निशा का चेहरा शर्म से लाल हो गया वो हड़बड़ाहट में बोली “मै
वाशरूम से आती हूँ।”
निशा के शर्म से लाल चेहरे को देख कर रवि बीते वक़्त में खो
गया जैसे अभी कल की ही बात हो।
उसे फ़ोन आया की उसकी माँ का एक्सीडेंट हो गया है और उन्हें
हॉस्पिटल ले गये हैं। वह परेशान हालत में हॉस्पिटल पंहुचा।
रवि “मुझे फ़ोन आया था एक्सीडेंट केस है मेरी माँ एडमिट है।”
तभी पीछे से एक आवाज आयी “आप की माँ को डॉक्टर देख रहे है
वार्ड नंबर 21 में है।”
रवि तेज चलता हुआ रूम के बाहर पंहुचा, नर्स ने उसे बाहर ही
रोक दिया, बोली उसकी माँ ठीक है। वो रिसेप्शन पर वापस आया, उसने पूछा “मेरी माँ को
यहाँ कौन लाया।”
रिसेप्शनिस्ट “सर जिस लड़की ने आप को वार्ड नंबर बताया, वो
ही आप की माँ को यहाँ लायी थी।”
रवि ने उसे ढूंढा मगर वह नही मिली। रवि वापस वार्ड नंबर 21
पर आ गया।
नर्स ने रवि को बताया की उसकी माँ को ऑब्जरवेशन में रखा गया
है, आज वह उनसे नहीं मिल पायेगा।
किसी तरह रवि ने चिंता में वो एक दिन काटा। दूसरे दिन वह
हॉस्पिटल पंहुचा, वार्ड के अन्दर गया, नर्स उसकी माँ को दवा दे रही थी, वह लड़की
बगल में बैठी थी जो उससे कल मिली थी।
रवि ने माँ का हाल पूछा, माँ ने आँखों से अपने अच्छे होने
का इशारा किया। नर्स ने रवि को जाने के लिया कहा ताकि उसकी माँ आराम कर सके।
रवि और वह लड़की बाहर आ गये, रवि बोला “चाय”, लड़की ने हाँ
में सर हिला दिया।
टेबल पर चाय पड़ी थी दोनों शांत बैठे थे, रवि “थैंक यू आप
मेरी माँ को समय पर हॉस्पिटल ले आयी”
लड़की बोली “आप मेरी जगह होते और मेरी माँ के साथ ऐसा होता
तो आप भी वही करते जो मैंने किया, आप की माँ मेरी माँ जैसी है”
रवि बोला “चाय लीजिये, ठंडी हो जाएगी”
“क्या हुआ, तुमने चाय नहीं ली” निशा की आवाज रवि के कान में
पड़ी, रवि अपनी यादो से चाय की टेबल पर वापस आ गया था। उसे ऐसा लगा जैसे बिता हुआ
कल उसके सामने है।
निशा “क्या सोच रहे थे”
“तुम्हारे बारे में” यादों की भवर में डूबा रवि बोल पड़ा। वो
क्या बोल पड़ा ये समझ आते ही वो बोला “सॉरी, मेरा मतलब वो नहीं था मुंह से निकल गया।”
निशा के चेहरे को शर्म और हिचकिचाहट ने एक साथ ढक लिया था।
रवि कुछ बोलने की कोशिश कर रहा था की उसके कान में ‘मम्मी
मम्मी’ की आवाज सुनाई दी, एक छोटी सी लड़की दौड़ते हुए निशा के पास आ गयी।
रवि ने पूछा “ये तुम्हारी बेटी है” निशा”हाँ”
रवि शांत स्वर में बोला “बहुत प्यारी है, कितने साल की है।”
निशा “तीन साल”
रवि ने हिचकिचाते हुए पूछा “इसके पिता” निशा “इसकी माँ पिता सब मै ही हूँ”
रवि “जब मै आया ये कहाँ थी मै तो देख ही नहीं पाया”
निशा “ये कैफ़े मेरी दोस्त का है यहाँ इसे सभी जानते है उनके
पास ही खेल रही थी।”
निशा जल्दी में बोली “माफ़ करना वैक्सिनेसन के लिए जाना है,
डॉक्टर से अपॉइंटमेंट है।”
रवि “इतने सालो बाद मिली हो कुछ देर और रुक जाओ।”
निशा “किसी और दिन”
निशा अपनी बच्ची को ले कर चली गयी।
रवि हाथो में चाय का कप पकडे इस ग्लानी में की उसने क्या खो
दिया, फिर से अतीत की यादो में खो गया।
चाय का कप हाथ में लिए रवि ने कहा “आप का नाम तो मैंने पूछा
ही नहीं।” “निशा” लड़की ने जवाब दिया।
निशा सावले रंग की एक साधारण सी लड़की, आँखों पर हल्के नीले
रंग का चश्मा पहने हुए, जो उसकी आँखों को ढक देता, बोल चाल में प्यार से भरी हुई। दुनिया
में उसका कोई था, तो वह उसकी माँ थी।
एक तरफ हॉस्पिटल में रवि की माँ की तबियत ठीक हो रही थी,
दूसरी तरफ रवि और निशा में नजदीकियाँ बढ़ रही थी। रवि की माँ हॉस्पिटल से घर आ गयी,
लेकिन रवि और निशा किसी न किसी बहाने एक दूसरे से मिलते और वक़्त बिताते।
उनके दिल प्यार की खुशबू से भरे हुए थे, लेकिन उसका इजहार
करने से हिचकिचा रहे थे।
एक दिन रवि ने हिम्मत जुटा कर कहा “निशा मै तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ।”
निशा “बोलिए”
एक दिन रवि ने हिम्मत जुटा कर कहा “निशा मै तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ।”
निशा “बोलिए”
“मेरी माँ मेरी शादी करना चाहती है।” रवि धीरे से बोला
निशा रुआँसे स्वर में बोली “माँ चाहती है तो वो, आप के लिए
अच्छा ही चाहेंगी”
रवि “लेकिन मेरी माँ को बहु के रूप में तुम पसंद हो।”
निशा शर्मा गयी। शर्म से वो रवि से नज़रे चुराने लगी। रवि”मै माँ से क्या बोलू।”
निशा “मै माँ की बात को कैसे मना कर सकती हूँ।”
रवि ने अपने माँ को सारी बातें बतायी, उसके माँ बहुत खुश
थी, वह निशा से मिलना चाहती थी।
रवि ने निशा को बताया की माँ उससे मिलना चाहती है, निशा रवि
के साथ माँ को मिलने चली गयी।
माँ निशा को देख कर बहुत खुश हुई।
माँ “तुम्हारी माँ कैसी हैं।” निशा “जी अच्छी हैं।”
माँ “वो तुम दोनों के बारे में जानती हैं।” निशा “जी”
माँ ”तुम दोनों शादी करना चाहते हो, क्या उन्हें पता है।”
निशा ”जी नही, आप का आशीर्वाद मिल गया, अब बता दूंगी।”
माँ ”दोनों खुश रहो, एक बात पूछू निशा।” निशा”जी पूछिए”
माँ ”तुम रंगीन चश्मा क्यों पहनती हो।” रवि”मैंने भी एक बार पूछा था, उस दिन ये
जल्दी में थी, याद है।”
निशा धीरे से बोली ”कुछ साल पहले एक छोटा सा एक्सीडेंट हो
गया था, चोट लग गयी थी।”
ये बोलते हुए निशा ने अपना चश्मा उतार दिया, उसकी पलकों पर
से होते हुए आँखों के नीचे तक हल्के कटे का निशान था। ये देख कर रवि के चेहरे का
रंग उतर गया।
माँ ”कोई बात नही बेटी जिंदगी में ऐसी घटनाये हो जाती हैं।”
निशा माँ का आशीर्वाद ले कर घर चली गयी। लेकिन रवि का मन
खट्टा सा हो रखा था। उसकी आँखों के सामने बार बार निशा की आँखों के कटे निशान आ
रहे थे। तभी निशा का फ़ोन आया, रवि ने फ़ोन नहीं उठाया।
दिन बीत गया, निशा ने रवि को फ़ोन कर मिलने के लिए पूछा, रवि
ने बहाना बना कर मना कर दिया। ऐसे ही दिन बीतने लगे। रवि कटा कटा सा रहने लगा, दिन
महीने में बीत गये। निशा ने रवि के नकारात्मक बर्ताव से दुखी होकर मिलने की जिद्द
और फ़ोन करना बंद कर दिया। रवि परेशान सा रहने लगा, उसकी समझ में नहीं आ रहा था की वो
क्या करे, क्या न करे, क्या सही है क्या नही।
रवि को कई दिनों से परेशान देख कर उसकी माँ ने उससे परेशानी
की वजह पूछी। रवि ने माँ को सारी बाते बता दी, माँ ने रवि को समझाया, दिल के
रिश्ते शरीर पर लगे निशानों से मिट नहीं जाते। शादी के बाद अगर तुझे ऐसे चोट लग
जाती तो क्या निशा को तुम्हे छोड़ देना चाहिए था। कोई भी इन्सान हर प्रकार से
परफेक्ट नही होता है।
रवि ने इस बारे में
बहुत सोचा, उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था।
रवि बिना वक़्त गवाए निशा के घर गया, वहाँ ताला लगा था।
पड़ोसियों से पूछने पर पता चला कि निशा की माँ का कुछ दिन पहले स्वर्गवाश हो गया, इस
घटना के बाद वो घर बेच कर कही चली गयी। रवि ने बहुत कोशिश की निशा के बारे में पता
करने की, लेकिन कुछ पता नहीं चला।
महीने सालों में बीत गये, रवि की कोशिश से निशा का पता मिल
गया। रवि ने निशा से फ़ोन से संपर्क कर उससे मिलने के लिए आग्रह किया। निशा ने रवि को
काफी शॉप पर मिलने के लिए कहा।
रवि हाथो में चाय का कप पकड़े सोच रहा था कि मुलाकात ऐसी
होगी उसने ऐसा तो नही सोचा था, लेकिन गलती उसकी ही थी कि निशा उससे दूर हो गयी।
दिन बीत गया लेकिन रवि का मन नही मान रहा था। दूसरे दिन रवि
निशा के घर गया। निशा रवि को घर के दरवाजे पर देख कर हैरान हो गयी। दोनो घर के
अंदर एक दूसरे के सामने शांत बैठे थे।
रवि दिल से बोला “मै तुमसे माफ़ी मांगना चाहता हूँ, जो मैंने
तुम्हारे साथ किया।” उसकी आवाज में तड़प थी।
निशा ”माफ़ी मांगने की जरुरत नही है।”
रवि “मै समझ नही पा रहा कैसे कहूँ, मुझे इस बात से कोई फर्क
नही पड़ता की तुम्हारा बीता हुआ कल क्या था। हो सकता है तुम्हे किसी की जरुरत ना हो, लेकिन मुझे तुम्हारी जरुरत है। मै....मै तुमसे आज भी प्यार करता हूँ। मै
तुम दोनों के साथ एक खुशहाल जिन्दगी बिताना चाहता हूँ।”
रवि अपने मन की बात एक साँस में बोल गया।
निशा शांत बैठी थी, जैसे वो किसी उलझन में हो की क्या जवाब
दे।
निशा शांत मन से धीमी आवाज में बोली ”मै तुम्हारी भावनाओ को
समझ सकती हूँ, मेरी बेटी कीर्ति मुझे 1 साल पहले अकेले भटकते हुए मिली थी। उसकी
उम्र तक़रीबन 2 साल रही होगी। उसके पेरेंट्स को पुलिस ने खोजने की कोशिश की लेकिन
वह नही मिले। कीर्ति मेरे साथ ही थी, बाद में उसे अनाथालय ले गये, मेरे बिना उसकी
तबियत ख़राब रहले लगी। उसके बाद से कीर्ति मेरे साथ रहने लगी, उसे मैंने अडॉप्ट कर
लिया। उसके लिए सिर्फ मै हूँ, मुझे थोडा वक़्त चाहिए, तुम्हे भी थोडा वक़्त मिलेगा
कीर्ति के साथ वक़्त बिताने के लिए और तुम दोनों को एक दूसरे को समझने के लिए।
रवि और निशा के चेहरों पर खुशी से भरी हुई मुस्कराहट छिपी
हुई थी, जो अपने खोये हुए प्यार के मिलने से बाहर आकर नृत्य करने को व्याकुल हो
रही थी।
(Khoya Pyar Hindi Kahani)
P.K.
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