Lockdown Ghar Ya Hospital |
Lockdown
Ghar Ya Hospital ये मैंने अपने आप से क्यों नहीं पूछा, पूछ लेता तो ये हालात नहीं
होते, ऐसे ही उधेड़बुन में रवि (काल्पिनक नाम) एक कांच की दीवार के पास खड़ा सोचे जा
रहा था। ये सोचते सोचते वह बीते हुए वक़्त में चला गया।
राम्या (काल्पिनक
नाम): “महामारी फैली हुई है बाहर लॉकडाउन है कहा जा रहे है। ”
रवि: “आदरणीय
पत्नी जी मेरे चार दोस्त सामान लेने के बहाने बाहर निकले है उनसे मिलने जा रहा हूँ
और कुछ सामान भी ले लूंगा।”
राम्या ने
मना किया लेकिन रवि ने उसकी एक न सुनी और दोस्तों से मिलने चला गया। बहोत देर बाद वह
लौटा, बात आयी गयी हो गयी। सब कुछ सामान्य चल रहा था। एक दिन उसकी तबीयत ख़राब हो गई,
उसने दवाइयाँ ली लेकिन उसकी तबीयत ठीक नही हुई, धीरे धीरे उसकी तबीयत ज्यादा ख़राब होने लगी। उसकी टेस्टिंग
करनी पड़ी, टेस्टिंग में पता चला की वह महामारी फैलाने वाले वायरस की चपेट में आ चूका
था। ये जान कर उसके होश उड़ गये। उसे समझ में नहीं आ रहा था की यह सब कैसे हो गया।
उसे हॉस्पिटल
में भर्ती होना पड़ा। कुछ दिनों बाद पता चला की उसके पिता जी भी वायरस से बीमार हो गए
और उन्हें हॉस्पिल में भर्ती किया गया है। उम्र ज्यादा होने की वजह से उनकी हालत बहोत
ख़राब है। कुछ दिनों बाद उसके छह (6) साल के बच्चे को भी वायरस ने बीमार कर दिया। उसका
परिवार उसके संपर्क में आने के कारण बीमार हुआ। ये सब उसकी गलती के कारण हुआ था। मगर
अपने परिवार से दूर बेबस और दुखी होने के आलावा वो कुछ भी नहीं कर सकता था।
कुछ दिनों
में वो ठीक हो गया, उसने अपने पिता और बेटे को देखने का अनुरोध किया, बहोत विनती करने
पर उन्हें दूर से देखने के अनुमति मिल गई।
पहले वह अपने
पिता को देखने गया। उनकी हालत ख़राब थी सांस लेने में दिक्कत हो रही थी, उन्हें वेंटीलेटर
पर रखा गया था। उनकी ये हालत देख कर उसकी आँखों में आँसू आ गये। उसकी अंतरआत्मा उसे
धिक्कार रही थी, अगर उन्हें
कुछ हो गया तो वो अपने आप को कैसे माफ़ कर पाएगा।
हॉस्पिटल
के दूसरे वार्ड में उसका बच्चा भर्ती था। काँच की दीवार के पास खड़ा रवि अपने बच्चे
को देख रहा था। उसके घर पहुँचते ही वह उसके गले लग जाता था, खाना उसके साथ खाने की
जिद्द करता था। आज उसका बच्चा अपनी मम्मी और
पापा से मिलने के लिए रो रहा था। ना ही वह अपने बच्चे से मिल सकता था, ना गले लगा कर
उसे प्यार कर सकता था, ना चुप करा सकता था। रवि के आँख से आँसू रुक नहीं रहे थे।
उसके मन मस्तिष्क
में बस यही सवाल आ रहा था कि घर में सबके साथ प्यार के साथ रहना सुखद था या बाहर जा
कर महामारी घर के अंदर लाना।
P.K.
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